मकर संक्रांति सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व हर साल तब मनाया जाता है जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन को खासतौर पर गंगा स्नान के लिए शुभ माना जाता है। ब्रह्म बेला में गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है, चाहे वे जानबूझकर किए गए हों या अनजाने में। इसके बाद पूजा, जप, तप और दान-पुण्य करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। सनातन शास्त्रों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
मकर संक्रांति के इस पवित्र अवसर पर लाखों श्रद्धालु गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। इसके साथ ही वे पूजा, जप, तप और दान-पुण्य करके पुण्य कमाते हैं। मकर संक्रांति के दिन पितरों के तर्पण और पिंडदान का भी विशेष महत्व है। हालांकि, मकर संक्रांति की सही तिथि को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति रहती है। आइए, जानते हैं मकर संक्रांति की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
Makar Sankranti 2025 Date
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल मकर संक्रांति का पर्व माघ माह की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाएगा, जो 14 जनवरी को पड़ रही है। इस दिन सूर्य देव, जो आत्मा के कारक माने जाते हैं, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस कारण मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
इस दिन पुण्यकाल प्रातः 9:03 बजे से लेकर संध्या 5:46 बजे तक रहेगा, जिसमें स्नान, ध्यान, पूजा, जप, तप और दान का विशेष महत्व है। इसके अलावा, महा पुण्यकाल सुबह 9:03 बजे से लेकर 10:48 बजे तक रहेगा। इस अवधि में पूजा और दान करने से सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
सर्वोत्तम मुहूर्त 14 जनवरी को सुबह 9:03 बजे होगा, जब मकर संक्रांति का शुभ समय शुरू होगा।
ज्योतिषियों के अनुसार, 14 जनवरी (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) को सूर्य देव सुबह 9:03 बजे धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के राशि परिवर्तन के इस विशेष दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसलिए, इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
पूजा विधि
मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सबसे पहले सूर्य देव को प्रणाम करें और दिन की शुरुआत करें। इसके बाद अपने घर की सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर घर को शुद्ध करें। दैनिक कार्यों को निपटाने के बाद अगर संभव हो तो गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें, और यदि यह संभव न हो, तो गंगाजल मिलाकर पानी से स्नान करें।
इसके बाद आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और पीले रंग के कपड़े पहनें। अब सूर्य देव को जल अर्पित करें और तिल लेकर उन्हें अंजलि में रखकर बहते पानी में प्रवाहित करें। फिर पंचोपचार विधि से सूर्य देव की पूजा करें और पूजा के दौरान सूर्य चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती करें और पूजा का समापन करें।
इसके बाद अन्न दान करें और यदि संभव हो तो पितरों का तर्पण और पिंडदान भी करें।

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